Thursday, February 5, 2009
अज़ब पागल सी लड़की थी....
[Given below is a brilliant 'nazm' I happened to read somewhere and grew fond of. The most remarkable part about this nazm is that it's still not known WHO wrote this gem! Anyways, Hats Off to whoever came up with such a beautiful expression!]
अज़ब पागल सी लड़की थी....
मुझे हर रोज़ कहती थी..
"बताओ कुछ नया लिख़ा?"
कभी उससे जो कहता था
कि मैंने नज़्म लिखी है
मग़र उन्वान देना है..
बहुत बेताब होती थी!
वो कहती थी...
"सुनो...
मैं इसे अच्छा सा इक उन्वान देती हूँ। "
वो मेरी नज़्म सुनती थी..
और उसकी बोलती आँखें..
किसी मिसरे, किसी तस्बीह पर यूँ मुस्कुराती थीं..
कि मुझे लफ़्जों से किरणें फूटती महसूस होती थीं।
वो फिर इस नज़्म को अच्छा सा इक उन्वान देती थी
और उसके आख़िरी मिसरे के नीचे
इक अदा-ए-बेनियाज़ी से
फ़िर अपना नाम लिखती थी।
मैं कहता था
सुनो....
ये नज़्म मेरी है
तो फिर तुमने अपने नाम से मनसूब क्यूँ कर ली?
मेरी ये बात सुनकर उसकी आँखें मुस्कुराती थीं।
वो कहती थी
"सुनो.....
सादा सा रिश्ता है..
कि जैसे तुम मेरे हो
वैसे ही नज़्म भी मेरी है।
अज़ब पागल सी लड़की थी....
(उन्वान-शीर्षक, बेनियाज़ी-लापरवाही से, मिसरा - छंद का चरण)
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1 comment:
har ek misra ,har ek alfaz sach hi to ye kehta hai
ajab pagal si ladki thi
वो कहती थी
"सुनो.....
सादा सा रिश्ता है..
कि जैसे तुम मेरे हो
वैसे ही नज़्म भी मेरी है।
haye
is ehsaas se mera tumhara na raha baki
mubarak ho tumhe ye jam, mera to jam hai saki
yar aisi gazab ki cheeze post karte raha karo insipiration milti hai likhne ki .....
ab dekho toota hi sahi sher to nikla, kafia to mila wajan baad mein aa jayega.
behatareen...
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