Saturday, October 18, 2008

वो कहती है...



[Given below is a short Nazm by my favourite Shaayar, Saahir Ludhiyaanwi Saab. I don't exactly remember where I had read it first but for some strange reason, it has stayed in my memory. How I wish I had even a fraction of the eloquence that Saahir Saab possessed ! Take a bow, Saahir Saab !]


वो कहती है ......
बताओ बे सबब क्यूँ रूठ जाते हो ?
मैं कहता हूँ ...
ज़रा मुझ को मनाओ ...... .अच्छा लगता है

वो कहती है
मेरा दिल तुम से आख़िर क्यूँ नहीं भरता ?
मैं कहता हूँ ....
मोहब्बत की कोई हद ही नहीं होती ....!

वो कहती है ....
बताओ ...मैं तुम्हें क्यूँ भा गई इतना ?
मैं कहता हूँ ...
मेरी जां हादसे तो हो ही जाते हैं !

वो कहती है ...
अचानक मैं तुम्हें यूँ ही रुला दूँ तो ?
मैं कहता हूँ ...
मुझे डर है के तू भी भीग जाएगी ...!

वो कहती है ...
बताओ ..बारिशों की क्या हकीकत है ?
मैं कहता हूँ ...
के ये तो बादलों की आँख रोती है ...!

वो कहती है ...
तुम्हारे ख़्वाब सारे क्यूँ अधूरे हैं ?
मैं कहता हूँ ...
मेरी जां तुम इन्हें तक्मील दे दो न ...!